यूक्रेन और पाकिस्तान के हाल : कूटनीतिक संतुलन साधने में जुटा भारत-Conditions of Ukraine and Pakistan: India engaged in balancing diplomatic
यूक्रेन संकट, पाकिस्तान में चल रहे राजनीतिक उठा-पटक एवं श्रीलंका में आर्थिक संकट के बीच हाल में भारत कूटनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव व अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह दिल्ली पहुंचे और शीर्ष स्तर पर अहम लोगों से मिले। लावरोव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी समय दिया। इन दोनों के बयानों से कूटनीतिक तापमान में बढ़ोतरी दिखी।
दूसरी ओर, भारत के पड़ोसी नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा दिल्ली पहुंचे और सीमा विवाद के मसले पर नरम रुख का इजहार किया। श्रीलंका को भारत ने मदद भेजी। मालदीव में भारत खुलकर मौजूदा राष्ट्रपति के पक्ष में है। पाकिस्तान की सियासी संकट का असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पड़ेगा। इमरान की रूस यात्रा अमेरिकी रिश्तों के संदर्भ में एक आपदा की तरह रही। पाकिस्तान में नई सरकार बनने पर कुछ नया दिख सकता है। कुल मिलाकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र, भारतीय उप महाद्वीप व विभिन्न देशों के साथ अपने कारोबारी हितों को देखते हुए भारत कूटनीतिक संतुलन साधने में जुटा दिखा।
यूक्रेन संकट को लेकर खींचतान
यूक्रेन संकट के चलते जो कूटनीतिक हालात बने हैं, वे ज्यादा संवेदनशील माने जा रहे हैं। रूसी विदेश मंत्री के भारत आने का प्राथमिक कारण यूक्रेन के मसले पर भारत के निष्पक्ष रुख के लिए भारत का धन्यवाद देना था और अपने लिए भारतीय समर्थन जुटाना था, जिस पर रूसी आक्रमण को लेकर अपना रुख बदलने का दबाव हाल के दिनों में बहुत बढ़ गया है। यह विदेश दौरा दुनिया को यह भी दिखाने के लिए था कि रूस को अलग- थलग करने की कोशिश के बीच रूस के साथ दो ताकतवर देश चीन और भारत हैं। इसके अलावा ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका ने भी इशारा किया है कि यूक्रेन पर उनका नजरिया वही नहीं है, जो पश्चिमी देशों का है।
रूस और भारत के रिश्ते
भारत और रूस के बीच करीब आठ अरब डालर का व्यापार होता है। लेकिन सबसे बड़ी निर्भरता कूटनीति और रक्षा उपकरणों पर है। भारत, रूस से अपने रक्षा जरूरतों का दो तिहाई जरूरत पूरी करता है। इसके अलावा कूटनीतिक स्तर पर चाहे कश्मीर मुद्दा हो, रूस ने हमेशा से भारत का साथ दिया है। इसके अलावा अमेरिका के दबाव के बावजूद एस-400 भारत और रूस के बीच समझौता हुआ।
ऐसे में अमेरिका और रूस को लेकर भारत के सामने आज चुनौती है। वैसी चुनौती उसके सामने इजराइल और ईरान को लेकर रही है। लेकिन इस समय दोनों देशों के साथ भारत के बेहतर संबंध हैं। ऐसे ही सउदी अरब सहित खाड़ी देशों के साथ इस समय सबसे बेहतर स्थिति में हैं। श्रीलंका जो एक समय चीन के प्रभाव था वह भी आर्थिक संकट के समय भारत के नदजीक आया है। पाकिस्तान के साथ भारत ने एक स्पष्ट नीति बना रखी है। जिसमें आतंकवादी गतिविधियों की वजह से दूरियां बनी हुई हैं।
भारत-पाकिस्तान संबंध
भारत और पाकिस्तान के बीच भी सीमा विवाद को लेकर रिश्ते ठीक नहीं रहे हैं। हालांकि राजनीतिक संकट के दौरान इमरान खान ने शुक्रवार को कहा था कि वे भारत को उनकी विदेश नीति को लेकर दाद देना चाहेंगे। हमेशा उनकी विदेश नीति स्वतंत्र रही है। हालांकि विदेशी मामलों के कई जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो, जब तक पाकिस्तानी सेना का सत्ता में दखल होगा, भारत के साथ पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण बने रहने की ही संभावना ज्यादा है। हाल में पाकिस्तान की सैन्य खुफिया एजंसी और इस्लामी आतंकवादी तालिबान के बीच संबंध कमजोर हुए हैं।
तालिबान और पाकिस्तान की सेना के बीच हाल के दिनों में कुछ तनाव बढ़ा है। अधिकांश नेताओं की तुलना में इमरान खान मानवाधिकारों को लेकर तालिबान की कम आलोचनात्मक रहे हैं। अविश्वास प्रस्ताव से पहले इमरान की रूस यात्रा अमेरिकी रिश्तों के संदर्भ में एक आपदा की तरह रही। पाकिस्तान में नई सरकार बनने पर कुछ हद तक रिश्तों को सुधारने में मदद कर सकती है।अमेरिका की भाषा और भारत
रूस और यूक्रेन युद्ध ने एक बार फिर से दुनिया को दो गुटों में बांट दिया है। भारत ने जहां इस मामले में तटस्थ रुख अपनाया है। वहीं चीन भी रूस के साथ है। इसे देखते हुए दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का रूस के प्रति झुकाव है, जो फिलहाल पश्चिमी देशों को गले नहीं उतर रहा है। उसमें भी वह भारत को हर हाल में अपने पाले में लाना चाहते हैं।
इसी कड़ी में भारत पहुंचे अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह ने मास्को और बेजिंग के बीच असीमित साझेदारी का जिक्र करते हुए कहा था कि रूस पर जितना प्रभाव चीन बनाएगा वह भारत के लिए उतना ही प्रतिकूल होगा। दलीप सिंह रूस के उस प्रस्ताव पर भारत को सचेत कर रहे थे, जिसमें वह भारत को सस्ते दर पर कच्चा तेल देने की पेशकश कर रहा है।
क्या कहते हैं जानकार
रूस के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं, हमें वहां से हथियार मिलते हैं। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि रूस ने भारत के समर्थन में बयान दिए हैं कि कश्मीर भारत का हिस्सा है, लेकिन अभी तक अमेरिका और फ्रांस ने ऐसा नहीं किया है। यह तथ्य कश्मीर के मुद्दे पर महत्त्वपूर्ण है।
- नटवर सिंह, पूर्व विदेश मंत्री
भारत की विदेश नीति बहुआयामी है। हमारी जरूरतें डायनमिक है। इसके लिए भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बना रखी है। जहां तक भारत के रूस के साथ संबंधों की बात है तो वे केवल रक्षा संबंधों तक सीमित नहीं है। दोनों देशों के बीच गहरे संबंध हैं। भारत अपने हितों के मद्देनजर संतुलित नीति के साथ आगे बढ़ता है।
- विवेक काटजू, पूर्व राजनयिक
Reference-www.jansatta.com